Viral Click

यदि आप अंबेडकर के विचारों से ना-नुकुर कर रहे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि आप जातिवादी है

भारत के दमित, दलित, कुचले लोगों के लिए आस अंबेडकर ही हैं। भारत में गाँव के लोगों को, चाहे वे दलित हों या सवर्ण, उन्हें मार्क्स का नाम नहीं मालूम होता। उत्तर भारत, खासकर यूपी-बिहार में तो नहीं ही। लेकिन वे अंबेडकर का नाम बख़ूबी जानते हैं। सवर्णों में इस नाम को लेकर चिढ़ भी होती है, दबे-कुचलों में इसे लेकर प्यार।

भारत वर्ग व जाति-संघर्ष से जूझता देश है। जातियाँ ही यहाँ वर्ग तय करती हैं। तो अंबेडकर से सहमत हुए बिना नहीं रहा जा सकता।
अंबेडकर ने कहा कि मार्क्स अगर भारत में लिखते तो उनके लेखन का रूप कुछ अलग होता। लेनिन अगर भारत में पैदा होते तो जाति-संघर्ष पर ध्यान देते।

भारत की राजनीति में जाति-संघर्ष को एक मुद्दा बनाने का श्रेय अंबेडकर को जाता है। वरना स्वराज को किस तरह से पलटकर कुछ चंद लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार बताया गया, इससे हम परिचित हैं, नहीं हैं तो होना चाहिए।

इन्हीं वजहों से अंबेडकर याद आते हैं। उनका किया हुआ याद आता है। आपकी लाख असहमतियाँ हो सकती हैं अंबेडकर से लेकिन जाति के सवाल पर यदि आप उनके विचारों से ना-नुकुर कर रहे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि आपके-हमारे अंदर कहीं एक गहरा जातिवादी बैठा हुआ है, जिसे वर्तमान व्यवस्था से खूब फ़ायदा मिल रहा है।

सामाजिक बदलाव यदि आप चाहते हैं तो बुनियादी ढाँचागत बदलाव के तत्व आपको अंबेडकर में मिलेंगे। और उन्हें अपनाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। तब अंबेडकर से आपको रश्क़ नहीं, इश्क़ होगा।

कोई भी तनक़ीद से परे नहीं है। लेकिन यदि आप अपनी विचारधारा को पोसने के लिए दूसरी प्रगतिशील विचारधारा को जबरन पालने से उतारेंगे तो आपको सामाजिक-राजनीतिक इतिहास में मंथरा जैसी श्रेणी में रखा जाएगा। अतः इससे बचें। और पढ़ें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *